जिनकी ऊँची जाति, अकड़ते, जोर दिखाते हैं, तनते हैं ?
क्योंकि, मिनिस्टर-व्यापारी-अफसर-नेता, वे ही बनते हैं ?
आलीशान जिन्दगी जिनकी, देख हमें जो मुँह बिचकाते,
रोजगार के लिए हमेशा हम जिनके दर पर ही जाते ?
भूखा अनपढ़ रखने हमको, जो कि राम का जाप सिखाते,
सौ में से दस होकर भी जो, सौ का माल हजम कर जाते।
ऊँच नीच की बात, जाति के मंत्र जो कि अब भी गढ़ते हैं,
हमें पनपता देख आज भी जिनके हृदय जले पड़ते हैं ।
जिसकी जाति नहीं हो कोई, ऐसा पुरुष हमें बतलाओ ?
किसको दूँ मैं वोट बताओ ?
मुझे पता ही नहीं चला, यह जाति जन्म से साथ जुड़ गई,
मैं मजबूर, जिन्दगी मेरी, जाति-प्रथा के साथ मुड़ गई ।
बिन स्वारथ, उपकार प्यार कर इसी जाति ने मैं अपनाया,
जीवन का आनन्द-भोग-सुख, मिला यहीं जितना मिल पाया।
माता-पिता-मित्र-गुरु-ईश्वर, सब कुछ इसी जाति से पाये,
जीवन-धर्म यही होगा, कुछ करूँ, जाति का ऋण चुक जाए।
बागडोर सत्ता की जब तक, मेरे बन्धु नहीं थामेंगे,
सब्ज-बाग दिखलाने वाले लोग, हमें बस बहलावेंगे ।
बिना जाति को मान दिलाए, किसको मान मिला बतलाओ ?
किसको दोगे वोट बताओ ?
02-10-2001